Sunday, January 3, 2010

लस्सी के बहाने-१

अबे इतनी सर्दी में लस्सी पिलाकर मारने का इरादा है क्या? मैने ग़ाज़ियाबाद के पुराने बस स्टैण्ड से गुजरते हुए चिल्ला कर कहा। दुकान पर बैठे दुकानदार ने हल्की की मुस्कान फेंकी और मुझे इशारा करके अपने पास बुलाया। सड़क पार करने के दौरान देखा कि दो चार लोग मेरी ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देख रहे थे। उनकी निगाहों के निशाने को देखते हुए मैने सोचा बेटा पट-पट बोलने की ये आदत किसी दिन तुम्हे मारवागी ये तो निश्चित है। और लगता है तुम्हारा इंतज़ार ख़त्म हो गया। सामने दुकानदार का चेहरा-मोहरा देखकर मै इसके प्रति और भी आश्वस्त हो गया था। अब पीटने की बारी थी। मै लगने वाली मार को माप-तोल करने लगा। दुकान मालिक की ऊंचाई मेरी से इंच भर ही छोटी होगी लेकिन अधेड़ उम्र का मजबूत डील-डौल मेरे अन्दर तक कंप-कपी पैदा कर रहा था। सरकता हुआ सा मै पास जा पहुंचा। अब दुकान मालिक की बारी थी। तो उन्होने मुस्कुरा कर कहा- एक बार इस ठण्ड में हमारे दुकान की लस्सी तो पी के देखो फिर बात करना।
मै हाव-भाव से भांप गया कि अब पीटने का ख़तरा यहां नही है। मैने भगवान का धन्यवाद दिया कि आपने एक बार फिर मुझे बचा लिया। तब फिर क्या था मैने भी चौड़ाई के साथ कहा -इतनी ठण्ड में ये लस्सी बनाकर क्यों लोगों को डरा रहे हो, और लस्सी तो लस्सी ये जो आपने बर्फ की सिलि्लयां रखी हुई हैं ये तो लोगों की रूह कापां दे रही हैं
इस पर संजीव (दुकान मालिक) ने कहा कि ये तो मलाई को बचाने के लिए रखी गयी हैं वैसे त्हारे मन में लस्सी को लेकर ज़्यादा ही डर है। इतने कहने के बाद तेज़ आवाज़ में कांउटर पर खड़े आदमी को कहा दे रे आधा गिलास लस्सी यहां पे। मैने मन में सोचा यार ये तो मार से भी ज़्यादा ख़तरनाक हो गया आज तो फंस गऐ। और इधर संजीव का बोलना जारी रहा। उन्होने आगे बताया अगर यू लस्सी गर्मी में मिल जाऐ पीने कू, तो यहां सु वहां तलक लेन लग जाऐगी। बुरा सा चेहरा बनाऐ मैने सोचा हां तुझे तो धन्धा करना है लोगों की परवाह क्यों करेगा। फिर मैने कहा- रहने दो मै लस्सी नही पीऊँगा,मेरी तबीयत ख़राब हो जाऐगी.मियादी बुखार आ जाऐगा या फिर गला तो ज़रूर ही ख़राब हो जाऐगा।
लेकिन मेरी परेशानी वो कहां समझने वाला था.उसने कहा- अजी कुछ हो जाऐ तो हम यही हैगें. आज सु ना हम तो सन् ७८ से दुकान किऐ बैठे हैं। मैने कहा- हां बाबा कालेज में था तो पैसे बचा कर मै भी गर्मी में आपकी लस्सी महीने में एक दो बार तो पी ही लेता था और दोस्तों से लालमन की लस्सी के चर्चे करता था। लेकिन आज तो बख्श दो। इतने में लस्सी सामने थी डरते-डरते हल्का घूंट भरा। दुकानदार ने पूछा- क्यों मज़ा आया न। अब मैने भी मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ जवाब दिया- हां वाक़ई लाजवाब है। तीन-चार साल बाद लालमन की लस्सी चखी दी आनन्द तो आ ही रहा था। पुरानी बाते भी आंखो के सामने आ रही थी। गर्मी के दिनों मै जहां भी गया लस्सी देखकर लालमन की लस्सी याद आ ही जाती थी। पीता था लेकिन स्वाद का अता-पता नही। मज़ा आ गया चटोरी जीभ ने ठंड में चाय की चुस्कियां ली हैं पकौड़ीयां भी छक कर खाई हैं लेकिन लस्सी का मज़ा तो पहली बार लिया है। ये अंदाज़ भी मज़ेदार रहा।

Thursday, November 12, 2009

बाबा भारती का विश्वास मैने तोड़ा है


अब मै चौराहे पर भीख मांगने वालों का करूँ क्या? बुरा देखने पर बुरा ही दिखता है। अच्छाई भी दब के रह जाती है। एक बार काफी साल पहले मै अपनी दोस्त के साथ आटो से आ रहा था, एक लड़की फूल बेचने आयी। गुलाब के फूल का गुच्छा दस रू का दे रही थी। हम अपनी बातों में मशरूफ़ थे। मेरी दोस्त ने एक बार कहा कि ले लो। लेकिन मेरा मन नही था। इसी बीच हरी बत्ती का सिग्नल हुआ और आटो ने सरकन शुरू कर दिया। दुआ देने वाले होठों ने तेवर बदले और तेज़ी से चिल्लाते हुए हम दोनों के बिछड़ने का आर्शीवाद भी दे डाला। गुस्सा तो मुझे काफ़ी आया लेकिन आदतन बैचेन हुआ और घर चला आया। घर आकर कुछ विचार दिमाग में घूमें और शान्त हो गऐ। आज तीन साल बीत चुके हैं रोज़ आई.आई.टी. गेट के पास उसी लड़की को कैलेन्डर तो कभी खिलौने बेचते देखता हूं और शाम को वहीं फूल बेचते हुए। पिछली घटना से सबक लेते हुए मैने चौराहों पर इस तरह की फेरी वाली दुकानों से कुछ भी नही ख़रीदा है। हाँ कभी-कभार जिस दिन मन में श्रद्धा उमड़ आई तो कमर पर लटकते बच्चों के नाम पर तो कभी रिंग में से निकल,चेहरे पर मूंछ बनाऐ बच्चों को कुछ रू.दो रूपया ज़रूर दिया है। पिछले महीने ही ऐसी ही भक्ति मेरे अंदर उमड़ पड़ी। उस दिन दीपावली का दिन था सड़के ख़ाली थी। आई.आई.टी गेट पर आटो जाकर रूका रोज़ की तरह बारह पन्द्रह लोगों वाली फौज़ नही थी। आटो में बैठा मै कुछ सोच रहा था। इतने में एक आवाज़ ने मेरा ध्यान खींचा दीपावली का दिन है भोले बाबा को दूध पिलाना है,मैने पलट के देखा तो एक भगवा डाले किशोर खड़ा था और गले में साँप लटक रहा था। मैने भी देर नही की और झट से पर्स निकाल लिया। पर्स में से मैने दस का नोट निकालकर उसकी ओर बढ़ा ही रहा था कि उस किशोर ने झपटा मार मेरे हाथों से पर्स छीनने की कोशिश की। मेरी पकड़ पर्स पर मज़बूत थी वह छीन नही पाया। इस बीच आटो चल चुका था। मेरा भन्नाया सा दिमाग़ चक्कर दे रहा था। तब तक मै लगभग सौ मीटर आगे चला गया था। मैने तेज़ी से कहा आटो रोको, साले लूटरे हैं ये इन्हे सबक सिखाना ही पड़ेगा दिन भर में न जाने कितने औरों को भी शिकार बनाऐगें। रेगतें आटो में से ही मै कूद पड़ा दौड़ कर पीछे जाने लगा। मुझे वो लड़का दिखाई दे रहा था एक जोड़े को रोक कर उन्हे बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहा था। पीछे से मैने एक धौल जमाई। वह अचकचा के मुड़ा मैने कहा- साले लूटरे, कमीनों गुडागर्दी करते हो.....हाथ उठाया मारने के लिए लेकिन अधीर सा चेहरा देख मेरा हाथ रूक गया। बड़बड़ाते हुए कहा, भाग जाओ यहां से सब के सब अभी, नही तो बहुत मार खाओगे। गुस्से से अपने नथुने फूलाते हुए मै वापस चल दिया। बात आनी-जानी हो गई बीच-बीच में सोचता रहा कि महिलाओं की चैन और सामान भी ऐसे ही लूटते होगें ये सब। मै तो लड़का हूं तो लड़ भी लिया धमकी भी दे दी लेकिन उनका क्या........इसके बाद में पूरे दिन आफिस से सोचता रहा क्या मै उसे ना मारके अच्छा किया या मुझे मार देना चाहिए था।

Friday, November 6, 2009

दादा का जाना

सचिन सत्रह हज़ारी बन गऐ। भारत मैच हार गया। साथ ही दुख भरी ख़बर ये कि सचिन के दीवाने और मीडिया के पितामह प्रभाष जोशी जी नही रहे। मै रात मैच के दौरान कह रहा था कि देखना कल सुबह का जनसत्ता। प्रभाष लिटिल मास्टर के बारे में क्या कुछ लिखते हैं। मैच देखने के दौरान ही द्दादा की बैचेनी बढ़ी और कुछ ही पलों में दुनिया को अलविदा कह दिया। ख़बर मुझ तक पहुंची और मै कुछ पलों के लिए शून्य हो गया। यदा कदा मिलने का लालच मुझ से छिन गया। जनसत्ता के पन्नों पर रविवार का इंतज़ार छिन गया। इन सब के बीच पिछले महीने की मुलाक़ात मेरे सामने आ गयी। पिछले महीने ११ अक्टू. को दादा से भीलवाड़ा में मुलाक़ात हुयी थी। सोशल आडिट के लिए देश भर से हज़ारो लोग जमा हुए थे। दादा को बोलने का मौक़ा मिला तो राजस्थान से प्यार जताने के बाद बोले कि मुझसे लोग बार-बार पूछते हैं कि आप इतनी यात्राऐं क्यों करते हैं इस उम्र में। तो प्रभाष जी ने लोगों से कहा कि मै उनसे ये कहता हूं कि देखो मै मौत से बचने के लिए इतनी यात्रा करता हूं। अब मेरी उम्र तो हो ही चुकी है। यमराज मेरा वारण्ट जारी कर चुका है। इसलिए उसके कारिन्दे जब दिल्ली पहुंचते हैं तो मै मुबंई में होता हूँ। जब वो मुबंईं तो मै कोलकता और जब वो कोलकता तो मै पटना। बस इसी तरह से डौज़ दे रहा हूं उन्हे। इसलिए मै ठीक हूं चिन्ता ना करें। ये बात अब बार-बार मेरे कानों में गूँज रही है। सोच रहा हूँ दादा से इस बार कैसे चूक हो गयी।

Tuesday, December 9, 2008

परिणाम सामने है अब सर धुना जा रहा है

आठ दिसम्बर की सुबह से ही टी.वी. पर नज़रें गड़ा दी थी। एक उत्सुकता थी नाश्ता बेस्वाद लग रहा था और कमोबेश स्थिति सभी की ऐसी ही थी। कुछ सुकून भी मिला चलो भूत,सेक्स और सनसनी से दूर टी.आर.पी. वाले प्रोग्राम में एक आम आदमी के हित वाला प्रोग्राम भी शामिल है। वो आम आदमी जो मेरे देश में आम बना हुया है शायद रहेगा भी। अगर ना रहा तो मुश्किल हो जाऐगी हम पत्रकारों को भी हम आम आदमी की दुहाई देकर नेताओं से कोई सवाल ना कर सकेगें और ना ही नेता हम तोहमत लगा सकेगें कि जब देखो आम आदमी की ही धुनी रमाऐ रहते हो। अरे यार इस देश में कुछ ख़ास भी है उस पर भी तो निगाहें डाल लो। ख़ैर दिल्ली में लोगों ने शील को चुना। शीला दीक्षित तीसरी बार कुर्सी पर क़ाबिज हुयी है लगता ऐसा है कि पिछले विधानसभा की एक कड़ी मात्र हो। यह सफ़लता की ऊंचाई है। परिवर्तन लोगों को पसंद है शहर को सजीला देखने का ख़्वाब लोगों की आंखों में भी है और सपने दिखाने वाले से ज़्यादा लोगों ने सपने पूरा करने वाले को तरज़ीह दी है। राजस्थान का जनादेश मध्यप्रदेश में जनता का आदेश सभी के सामने है। सत्ता का सेमीफ़ाइनल छत्तीसगढ़ में भी था रमन सिंह अव्वल रहे पाँच साल तक लोगों को अपनी सेवाऐं देगें। मिज़ोरम में कांग्रेस ने मिज़ो नेशनल फ्रंट का सफाया कर सभी को चौंका दिया है। साथ एक कमरे में अपनी दुनिया समे‍टे विश्लेषकों को भी आश्चर्य में ड़ाल दिया।यह सभी की चेतना जागृत करने के लिए काफ़ी है। रणनीतिकारों को अब जनता के बीच नयी नीतियों के साथ जाने के लिए कमर कसने में लग गये है। सत्ता का सेमीफ़ाइनल मानने वालों भी अपनी ख़ुशफहमी को उतार फेंक दिया है। और इस जनादेश में सट्टा खेलने वाली मीडिया ने भी इफ़,बट से कन्नी काट ली है और सस्वर सभी जनता की जय करने में लग गये हैं।