अब मै चौराहे पर भीख मांगने वालों का करूँ क्या? बुरा देखने पर बुरा ही दिखता है। अच्छाई भी दब के रह जाती है। एक बार काफी साल पहले मै अपनी दोस्त के साथ आटो से आ रहा था, एक लड़की फूल बेचने आयी। गुलाब के फूल का गुच्छा दस रू का दे रही थी। हम अपनी बातों में मशरूफ़ थे। मेरी दोस्त ने एक बार कहा कि ले लो। लेकिन मेरा मन नही था। इसी बीच हरी बत्ती का सिग्नल हुआ और आटो ने सरकन शुरू कर दिया। दुआ देने वाले होठों ने तेवर बदले और तेज़ी से चिल्लाते हुए हम दोनों के बिछड़ने का आर्शीवाद भी दे डाला। गुस्सा तो मुझे काफ़ी आया लेकिन आदतन बैचेन हुआ और घर चला आया। घर आकर कुछ विचार दिमाग में घूमें और शान्त हो गऐ। आज तीन साल बीत चुके हैं रोज़ आई.आई.टी. गेट के पास उसी लड़की को कैलेन्डर तो कभी खिलौने बेचते देखता हूं और शाम को वहीं फूल बेचते हुए। पिछली घटना से सबक लेते हुए मैने चौराहों पर इस तरह की फेरी वाली दुकानों से कुछ भी नही ख़रीदा है। हाँ कभी-कभार जिस दिन मन में श्रद्धा उमड़ आई तो कमर पर लटकते बच्चों के नाम पर तो कभी रिंग में से निकल,चेहरे पर मूंछ बनाऐ बच्चों को कुछ रू.दो रूपया ज़रूर दिया है। पिछले महीने ही ऐसी ही भक्ति मेरे अंदर उमड़ पड़ी। उस दिन दीपावली का दिन था सड़के ख़ाली थी। आई.आई.टी गेट पर आटो जाकर रूका रोज़ की तरह बारह पन्द्रह लोगों वाली फौज़ नही थी। आटो में बैठा मै कुछ सोच रहा था। इतने में एक आवाज़ ने मेरा ध्यान खींचा दीपावली का दिन है भोले बाबा को दूध पिलाना है,मैने पलट के देखा तो एक भगवा डाले किशोर खड़ा था और गले में साँप लटक रहा था। मैने भी देर नही की और झट से पर्स निकाल लिया। पर्स में से मैने दस का नोट निकालकर उसकी ओर बढ़ा ही रहा था कि उस किशोर ने झपटा मार मेरे हाथों से पर्स छीनने की कोशिश की। मेरी पकड़ पर्स पर मज़बूत थी वह छीन नही पाया। इस बीच आटो चल चुका था। मेरा भन्नाया सा दिमाग़ चक्कर दे रहा था। तब तक मै लगभग सौ मीटर आगे चला गया था। मैने तेज़ी से कहा आटो रोको, साले लूटरे हैं ये इन्हे सबक सिखाना ही पड़ेगा दिन भर में न जाने कितने औरों को भी शिकार बनाऐगें। रेगतें आटो में से ही मै कूद पड़ा दौड़ कर पीछे जाने लगा। मुझे वो लड़का दिखाई दे रहा था एक जोड़े को रोक कर उन्हे बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहा था। पीछे से मैने एक धौल जमाई। वह अचकचा के मुड़ा मैने कहा- साले लूटरे, कमीनों गुडागर्दी करते हो.....हाथ उठाया मारने के लिए लेकिन अधीर सा चेहरा देख मेरा हाथ रूक गया। बड़बड़ाते हुए कहा, भाग जाओ यहां से सब के सब अभी, नही तो बहुत मार खाओगे। गुस्से से अपने नथुने फूलाते हुए मै वापस चल दिया। बात आनी-जानी हो गई बीच-बीच में सोचता रहा कि महिलाओं की चैन और सामान भी ऐसे ही लूटते होगें ये सब। मै तो लड़का हूं तो लड़ भी लिया धमकी भी दे दी लेकिन उनका क्या........इसके बाद में पूरे दिन आफिस से सोचता रहा क्या मै उसे ना मारके अच्छा किया या मुझे मार देना चाहिए था।
Thursday, November 12, 2009
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3 comments:
जो किया सही किया।
kuchh aage badhen, aur apni kashisha ko sarthak karen. Achhi baat hai aapka sambedansheel hona...........
एक महिला एक बच्चे को अपने आँचल में छुपा कर भीख मांग रही थी. वो मेरे पास आयी और मुझसे भी भीख माँगा. मैंने झट से कहा ये बच्चा तुम्हारा नहीं है तो उसने भी कहा ये बच्चा मेरा नहीं है. मुझे वो कहानी याद आ गयी जिसमे बच्चो को भाड़े पर लेकर भीख मांगने का धंदा चलता है. आपने सही किया लेकिन अफ़सोस लोग लुटे जाते हैं....
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