Friday, November 6, 2009

दादा का जाना

सचिन सत्रह हज़ारी बन गऐ। भारत मैच हार गया। साथ ही दुख भरी ख़बर ये कि सचिन के दीवाने और मीडिया के पितामह प्रभाष जोशी जी नही रहे। मै रात मैच के दौरान कह रहा था कि देखना कल सुबह का जनसत्ता। प्रभाष लिटिल मास्टर के बारे में क्या कुछ लिखते हैं। मैच देखने के दौरान ही द्दादा की बैचेनी बढ़ी और कुछ ही पलों में दुनिया को अलविदा कह दिया। ख़बर मुझ तक पहुंची और मै कुछ पलों के लिए शून्य हो गया। यदा कदा मिलने का लालच मुझ से छिन गया। जनसत्ता के पन्नों पर रविवार का इंतज़ार छिन गया। इन सब के बीच पिछले महीने की मुलाक़ात मेरे सामने आ गयी। पिछले महीने ११ अक्टू. को दादा से भीलवाड़ा में मुलाक़ात हुयी थी। सोशल आडिट के लिए देश भर से हज़ारो लोग जमा हुए थे। दादा को बोलने का मौक़ा मिला तो राजस्थान से प्यार जताने के बाद बोले कि मुझसे लोग बार-बार पूछते हैं कि आप इतनी यात्राऐं क्यों करते हैं इस उम्र में। तो प्रभाष जी ने लोगों से कहा कि मै उनसे ये कहता हूं कि देखो मै मौत से बचने के लिए इतनी यात्रा करता हूं। अब मेरी उम्र तो हो ही चुकी है। यमराज मेरा वारण्ट जारी कर चुका है। इसलिए उसके कारिन्दे जब दिल्ली पहुंचते हैं तो मै मुबंई में होता हूँ। जब वो मुबंईं तो मै कोलकता और जब वो कोलकता तो मै पटना। बस इसी तरह से डौज़ दे रहा हूं उन्हे। इसलिए मै ठीक हूं चिन्ता ना करें। ये बात अब बार-बार मेरे कानों में गूँज रही है। सोच रहा हूँ दादा से इस बार कैसे चूक हो गयी।

2 comments:

Unknown said...

पत्रकारिता के भिश्मपितामाहा नहीं रहे ये खबर आयी तो विश्वास नहीं हुआ. जितना उनके बारे में पढ़ा और उनको जाना उससे तो ये लगा की वो सचमुच में एक जिंदादिल इंसान थे. ऐसा लग रहा है जैसे हमरे अभिवाभाक नहीं रहे.....उनकी आत्मा को भगवान् शांति दे.....

अविनाश वाचस्पति said...

दादा विचारों के भी दादा रहे। विनम्र श्रद्धांजलि।