Tuesday, December 9, 2008

परिणाम सामने है अब सर धुना जा रहा है

आठ दिसम्बर की सुबह से ही टी.वी. पर नज़रें गड़ा दी थी। एक उत्सुकता थी नाश्ता बेस्वाद लग रहा था और कमोबेश स्थिति सभी की ऐसी ही थी। कुछ सुकून भी मिला चलो भूत,सेक्स और सनसनी से दूर टी.आर.पी. वाले प्रोग्राम में एक आम आदमी के हित वाला प्रोग्राम भी शामिल है। वो आम आदमी जो मेरे देश में आम बना हुया है शायद रहेगा भी। अगर ना रहा तो मुश्किल हो जाऐगी हम पत्रकारों को भी हम आम आदमी की दुहाई देकर नेताओं से कोई सवाल ना कर सकेगें और ना ही नेता हम तोहमत लगा सकेगें कि जब देखो आम आदमी की ही धुनी रमाऐ रहते हो। अरे यार इस देश में कुछ ख़ास भी है उस पर भी तो निगाहें डाल लो। ख़ैर दिल्ली में लोगों ने शील को चुना। शीला दीक्षित तीसरी बार कुर्सी पर क़ाबिज हुयी है लगता ऐसा है कि पिछले विधानसभा की एक कड़ी मात्र हो। यह सफ़लता की ऊंचाई है। परिवर्तन लोगों को पसंद है शहर को सजीला देखने का ख़्वाब लोगों की आंखों में भी है और सपने दिखाने वाले से ज़्यादा लोगों ने सपने पूरा करने वाले को तरज़ीह दी है। राजस्थान का जनादेश मध्यप्रदेश में जनता का आदेश सभी के सामने है। सत्ता का सेमीफ़ाइनल छत्तीसगढ़ में भी था रमन सिंह अव्वल रहे पाँच साल तक लोगों को अपनी सेवाऐं देगें। मिज़ोरम में कांग्रेस ने मिज़ो नेशनल फ्रंट का सफाया कर सभी को चौंका दिया है। साथ एक कमरे में अपनी दुनिया समे‍टे विश्लेषकों को भी आश्चर्य में ड़ाल दिया।यह सभी की चेतना जागृत करने के लिए काफ़ी है। रणनीतिकारों को अब जनता के बीच नयी नीतियों के साथ जाने के लिए कमर कसने में लग गये है। सत्ता का सेमीफ़ाइनल मानने वालों भी अपनी ख़ुशफहमी को उतार फेंक दिया है। और इस जनादेश में सट्टा खेलने वाली मीडिया ने भी इफ़,बट से कन्नी काट ली है और सस्वर सभी जनता की जय करने में लग गये हैं।

3 comments:

अश्विनी मिश्र said...

अरविंद जी...
जनता जनार्दन को राजनीतिक और खबरिया बहुरुपिए अगर समझ जाएं तो फिर शायद ये विशेषण बदलना पड़ जाए। वैसे भी ये अगर इस चुनाव में सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली बात ये रही कि पहली बार विकास को प्राथमिकता मिलती दिखाई पड़ती है। अगर कांग्रेस और भाजपा ये खुशफ़हमी पालें कि इनकी पार्टियों की नीतियों पर कहीं जनता ने मुहर लगाई है तो कम से कम लोकसभा चुनाव तक ये मुग़ालता न पालें। राज्यों के ताज़ा चुनाव सिर्फ और सिर्फ उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों की जीत और हार है न कि इनकी किसी नीति की। नतीजों से खुश होने की एक वजह भी दिखाई देती है कि राज्यों ने स्थानीय मुद्दों पर सरकार का चुनाव किया है जो कहीं न कहीं जागरूक और समझदार होते लोकतंत्र का आभास दिलाता है। जहां तक पंडितों के विश्लेषणों के सही और ग़लत होने की बात है.... अरे साहब दुकान तो इन्हें भी चलानी है... और शायद ये बाद में जानेंगें कि ....ये पब्लिक है सब जानती है.......।

संदीप द्विवेदी said...

जो आम जनता की बात करेगा वही देश पर राज करेगा.....ये कोई नारा नही है...हर बार जनता ने अपनी ताकत का अहसास कराया है...लेकिन न जाने नेता कौन सी धुनी रमा कर बैठे रहते हैं जिन्हें जनता जनार्दन केवल ५ सालों बाद ही याद आते हैं.....

राजीव करूणानिधि said...

किसी न किसी को तो चुनना ही था. वैसे कुछ खास विकल्प भी तो नहीं थे हमारे पास मेरे भाई. और जो विकास आप देखा रहे है वो आम के लिये नहीं खास के लिये है. बढ़ते बाजारवाद के लिये है. फ्लाई ओवर, चौडी सड़के, बड़े बड़े मॉल सभी खास के लिये है. आम को तो रोटी, कपडा और मकान चाहिए. इस मामले में सभी पार्टी की सरकार को मुह छिपाना पड़ेगा.