दिनों से सिलसिला हफ्तो में बदल गया पता ही नही चला। धीरे-धीरे खुराक बनने लगी और आज दो महीने गुजर गए हैं। रोज़ रात को फिल्म देखने की आदत हो गई हैं। कल रात भी क्या गुजरी है एक फिल्म के साथ। "धर्म" ये फिल्म का नाम है.....गंगा का घाट और उगते सूर्य के साथ फिल्म शुरू होती है थोडी सी उब लगती है। लेकिन बनारस के गंगा तट को देखने की अपनी एक अलग अनुभूती है। पंडित चतुर्वेदी अपने धर्म के पक्के हैं, धर्म में थोडी सी चूक धर्म का नाश कर सकती है....ये उनकी धारणा बन गई है। अपने कर्म के पक्के और धर्म के खूंटे से बंधे पंडित जी की सुबह गंगा स्नान से शुरू होती है जो शिव पूजा के साथ ख़त्म होती हैं। रोज़ का सिलसिला है। शास्त्रों का ज्ञान पूरा है ये विशेषता ही उन्हें दूसरो से अलग करती है। एक दिन शुद्र का स्पर्श पंडित चतुर्वेदी को अशुद्ध कर देता है तो गंगा में डुबकी लगा लेते हैं जनेऊ बदल लेते हैं और फिर से शुद्ध हो जाते हैं। घर में पत्नी और एक बिटिया है जो पंडित जी के धर्म को जिंदा रखने में सहयोग करती हैं। फिल्म की कहानी आगे चलती है पंडित जी के घर में एक बच्चा आता है। नवजात बच्चे का कोई धर्म नही होता ये सभी मानते हैं। लेकिन पंडित जी अपनी बिटिया से सवाल करते हैं बच्चे की जात बताओ। सवाल मुश्किल है एक तरफ ममता है एक तरफ धर्म है। धर्म हार जाता है ममता जीत जाती है। बच्चे के माँ-बाप का कोई सुराग नही, थक हार कर बच्चा पंडित जी के घर में पलता है। बच्चे को परिवार मिल जाता है बाबुजी, माँ और एक दीदी भी। पंडित जी भी खुश हैं अपना प्रतिबिम्ब बच्चे में देखते हैं लेकिन ये बिम्ब एक दिन टूटता है और बच्चे की माँ आ जाती है .............मंत्रों उच्चारण करने वाला बालक हिन्दू से मुसलमान बन जाता है ।एक द्वंद शुरू होता है........... आत्मा की आवाज और बाहरी दुनिया के बीच।.......और इस उठा पटक में धर्म की जीत होती है। "मानवता" की जीत.......संसार का एक मात्र धर्म जो अजन्मा है ये ही सनातन है और ये अमर भी है। कट्टर पंथीयों को आइना दिखाती ये फिल्म मुझे भी आइना दिखा गई। मैं भी कभी कभी या कहे तो पूर्वाग्रह के चलते अपना धर्म भूल जाता हूँ। मेरे जैसे भुलक्कड़ को ये फिल्म ज़रूर देखनी चाहिऐ। मुझे नही पता की उन्हें ये फिल्म धर्म का मार्ग दिखा पायेगी या नही........... ।
Monday, February 11, 2008
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1 comment:
पहले तो धर्म बना फिर जाति, काम ने लोगो को जात में बाँट दिया, गेडुवा कपड़े पहन कर माथे पर चंदन घिस कर बन गए धरम के ठेकेदार, धर्म जो शिक्षा देता है उसे कितने लोग मानते हैं। धर्म ग्रन्थ उपदेशों से भरी हैं हिंदू का रामायण, मुस्लिम का कुरान, सिख का गुरुग्रथ साहिब हो या क्रिस्चन का बाइबल। सभी अपने ग्रंथों की पूजा करते हैं लेकिन उस पर चलता कोई नहीं।
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