मुझे झगडा करना चाहिऐ था। दो-चार गाली भी देने की जो तमन्ना थी,वो भी दब के रह गई। मुझे याद हैं उस दिन मैं ऑफिस से घर वापस जा रहा था। साथ में भैया भी थे। ये उस दिन का सुखद संयोग ही था। आजकल संयोग भी बड़ी मुश्किल से होते हैं। नही.........होते नही बनाए जाते हैं। कुर्सी के लिए संयोग बनने में बडे बडे झमेले हैं। फिर ये कुर्सी घर की हो, दफ्तर की या फिर सत्ता के गलियारों की आसानी से कहीं नही मिलती। इन सबसे अलग मेरा और मेरे भैया का एक साथ घर लौटना वास्तव में संयोग ही होता हैं। क्योकि मैं चाह के भी संयोग नही बना सकता। रास्ते में मैं हमेशा की तरह खामोश था। और भाईसाहब एफ.एम् रेडियो बने हुए थे। मुझे जब भी मौका मिलता कुछ मैं भी उसमे अपनी बात कह लेता। अपनी अदायों को चुह्लाबाजियाँ का रूप देते हुए हम अपने घर की ओर जाने वाली गली में प्रवेश कर चुके थे। गली का नज़ारा बड़ा ही दिलकश होता हैं। खासतौर पर सुबह के नौ से दस बजे और फिर रात के आठ से नौ के बीच। इस समय सभी लोग कोई रेस जीतने की चाह में भाग रहे होते हैं। फर्क बस इतना होता हैं की सुबह वाली सौ मीटर वाली दौड़ शाम तक आते आते बढ़ कर तीन किलोमीटर वाली हो जाती हैं। जो वाया सब्जी और दूध वाले के साथ ही किसी इष्ट-मित्र के घर गप-शप के बाद पूरी होती हैं। गली के दूकानदार अपना सामान थोडा सा बाहर गली में ही रखने की कोशिश करते हैं। इस तरह से वे जान बूझ कर रास्ते को तंग करने में अपना सहयोग देते हैं। गली में गुजरते हुए हम अपने घर की ओर बढ़ रहे थे तभी एक बा इ क पे तीन लड़को की सवारी मेरे पीछे ही चली आ रही थी। हार्न बजा और अगले ही पल बा इ क मेरे टांग से टकरा गई। मुड़ते ही मैं प्रतिक्रिया स्वरूप कुछ कहना चाहता था। कुछ क्या अपनी खुनस को कहा-सुनी के रूप में व्यक्त करने की तमन्ना थी। लेकिन मैं अपने भाई को देख हतप्रभ रह गया। भैया दोनो हाथो को जोड़े खडे उनका अभिवादन कर रहे थे। स्वाभाव से बडे ही उग्र तेवर वाले भाई की इस विनम्रता के आगे मेरा गुस्सा गायब हो चुका था। ठीक उसी तरह जैसे सागर की लहरें साहिल से टकराकर शांत हो जाती है। लेकिन इस हरकत के लिए सबक सिखाने की कसक आज भी मेरे दिल में दबी रह गई हैं। और मैं सोचता हूँ की काश उस दिन संयोग से मेरे पास बंदूक होती...........
Monday, January 14, 2008
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1 comment:
shayad aapka bhi dil dimaag par hawi ho jata hai. waise galti kisi ki nahi.bheed me sabhi aage niklna chata hai aur jo dheeme chlte hai unhe bheed hi kuchal deti hai. mera ishara blueline se marne walon ki taraf hai. bheed to badh gayee lekin sansadhan utne hi hai...
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